Saturday, April 26, 2014

Movie Review: BHAAG MILKHA BHAAG

Movie Details

Title: Bhaag Milkha Bhaag
Director: Rakesh Om Prakash Mehra
Music: Shankar Ehsaan Loy
Genre: Biographical
Running Time: 189 Minutes
Language: Hindi
Rating: 4/5

Plot Summary. .

The film is a biopic drama about the flying sikh Milkha Singh tracing his journey from highs and lows, crafted diligently to weave a complete drama taking care of minutest of the detail. The marathon which starts with a motive to have a glass of milk and continues to take him to the pedestal of international athletic arena. It effortlessly shows the power preservance and dedication.

Monday, April 21, 2014

Sai Satcharitra (Hindi) - Chapter 51


Sai Satcharitra
Sai Satcharitra - Chapter 51

*श्री साई सच्चरित्र - अध्याय 51*  

उपसंहार
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अध्याय – 51 पूर्ण हो चुका है और अब अन्तिम अध्याय (मूल ग्रन्थ का 52 वां अध्याय) लिखा जा रहा है और उसी प्रकार सूची लिखने का वचन दिया है, जिस प्रकार की अन्य मराठी धार्मिक काव्यग्रन्थों में विषय की सूची अन्त में लिखी जाती है अभाग्यवश हेमाडपंत के कागजपत्रों की छानबीन करने पर भी वह सूची प्राप्त हो सकी तब बाब के एक योग्य तथा धार्मि भक्त ठाणे के अवकाशप्राप्त मामलतदार श्री. बी. व्ही. देव ने उसे रचकर प्रस्तुत किया पुस्तक के प्रारम्भ में ही विषयसूची देने तथा प्रत्येक अध्याय में विषय का संकेत शीर्षक स्वरुप लिखना ही आधुनिक प्रथा है, इसलिये यहाँ अनुक्रमाणिका नहीं दी जा रही है अतः इस अध्याय को उपसंहार समझना ही उपयुक्त होगा अभाग्यवश हेमा़डपंत उस समय तक जीवित रहे कि वे अपने लिखे हुए इस अध्याय की प्रति में संशोधन करके उसे छपने योग्य बनाते

Sunday, April 20, 2014

Sai Satcharitra (Hindi) - Chapter 50


Sai Satcharitra
Sai Satcharitra - Chapter 50

*श्री साई सच्चरित्र - अध्याय 50*  
काकासाहेब दीक्षित, श्री. टेंबे स्वामी और बालाराम धुरन्धर की कथाएँ
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मूल सच्चिरत्र के अध्याय 39 और 50 को हमने एक साथ सम्मिलित कर लिखा है, क्योंकि इन दोनों अध्यायों का विषय प्रायः एक-सा ही है

प्रस्तावना
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उन श्री साई महाराज की जय हो, जो भक्तो के जीवनाधार एवं सदगुरु है वे गीताधर्म का उपदेश देकर हमें शक्ति प्रदान कर रहे है हे साई, कृपादृष्टि से देखकर हमें आशीष दो जैसे मलयगिरि में होनेवाला चन्दनवृक्ष समस्त तापों का हरण कर लेता है अथवा जिस प्रकार बादल जलवृष्टि कर लोगों को शीतलता और आनन्द पहुँचाते है या जैसे वसन्त में खिले फूल ईश्वरपूजन के काम आते है, इसी प्रकार श्री साईबाबा की कथाएँ पाठकों तथा श्रोताओं को धैर्य एवं सान्त्वना देती है जो कथा कहते या श्रवण करते है, वे दोनों ही धन्य है, क्योंकि उनके कहने से मुख तथा श्रवण से कान पवित्र हो जाते है

Saturday, April 19, 2014

Sai Satcharitra (Hindi) - Chapter 49


Sai Satcharitra
Sai Satcharitra - Chapter 49


*श्री साई सच्चरित्र - अध्याय 49*  

हरि कानोबा, सोमदेव स्वामी, नानासाहेब चाँदोरकर की कथाएँ
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प्रस्तावना
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जब वेद और पुराण ही ब्रहमा या सदगुरु का वर्णन करने में अपनी असमर्थता प्रगट करते है, तब मैं एक अल्पज्ञ प्राणी अपने सदगुरु श्रीसाईबाबा का वर्णन कैसे कर सकता हूँ मेरा स्वयं का तो यतह मत है कि इस विषय में मौन धारण करना ही अति उत्तम है सच पूछा जाय तो मूक रहना ही सदगुरु की विमल पताकारुपी विरुदावली का उत्तम प्रकार से वर्णन करना है परन्तु उनमें जो उत्तम गुण है, वे हमें मूक कहाँ रहने देत है यदि स्वादिष्ट भोजन बने और मित्र तथा सम्बन्धी आदि साथ बैठकर खायेंतो वह नीरस-सा प्रतीत होता है और जब वही भोजन सब एक साथ बैठकर खाते है, तब उसमें एक विशेष प्रकार की सुस्वादुता जाती है वैसी ही स्थिति साईलीलामृत के सम्बन्ध में भी है इसका एकांत में रसास्वादन कभी नहीं हो सकता यदि मित्र और पारिवारिक जन सभी मिलकर इसका रस लें तो और अधिक आनन्द जाता है श्री साईबाबा स्वयं ही अंतःप्रेरणा कर अपनी इच्छानुसार ही इन कथाओं को मुझसे वर्णित कर रहे है इसलिये हमारा तो केवल इतना ही कर्तव्य है कि अनन्यभाव से उनके शरणागत होकर उनका ही ध्यान करें तप-साधन, तीर्थ यात्रा, व्रत एवं यज्ञ और दान से हरिभक्ति श्रेष्ठ है और सदगुरु का ध्यान इन सबमें परम श्रेष्ठ है इसलिये सदैव मुख से साईनाम का स्मरण कर उनके उपदेशों का निदिध्यासन एवं स्वरुप का चिनत्न कर हृदय में उनके प्रति सत्य और प्रेम के भाव से समस्त चेष्टाएँ उनके ही निमित्त करनी चाहिये भवबन्धन से मुक्त होने का इससे उत्तम साधन और कोई नहीं यदि हम उपयुक्त विधि से कर्म करते जाये तो साई को विवश होकर हमारी सहायता कर हमें मुक्ति प्रदान करनी ही पड़ेगी अब इस अध्याय की कथा श्रवण करें

Friday, April 18, 2014

Sai Satcharitra (Hindi) - Chapter 48


Sai Satcharitra
Sai Satcharitra - Chapter 48

*श्री साई सच्चरित्र - अध्याय 48*  

 भक्तों के संकट निवारण
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1.     शेवड़े और
2.     सपटणेकर की कथाएँ

अध्याय के प्रारम्भ करने से पूर्व किसी ने हेमाडपंत से प्रश्न किया कि साईबाबा गुरु थे या सदगुरु इसके उत्तर में हेमाडपंत सदगुरु के लक्षणों का निम्नप्रकार वर्णन करते है

सदगुरु के लक्षण
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जो वेद और वेदान्त तथा छहों शास्त्रों की शिक्षा प्रदान करके ब्रहृविषयक मधुर व्याख्यान देने में पारंगत हो तता जो अपने श्वासोच्छवास क्रियाओं पर नियंत्रण कर सहज ही मुद्रायें लगाकर अपने शिष्यों को मंत्रोपदेश दे निश्चित अवधि में यथोचित संख्या का जप करने का आदेश दे और केवल अपने वाकचातुर्य से ही उन्हें जीवन के अंतिम ध्येय का दर्शन कराता हो तथा जिसे स्वयं आत्मसाक्षात्कार हुआ हो, वह सदगुरु नहीं वरन् जो अपने आचरणों से लौकिक पारलौकिक सुखों से विरक्ति की भावना का निर्माण कर हमें आत्मानुभूति का रसास्वादन करा दे तथा जो अपने शिष्यों को क्रियात्मक और प्रत्यक्ष ज्ञान (आत्मानुभूति) करा दे, उसे ही सदगुरु कहते है जो स्वयं ही आत्मसाक्षात्कार से वंचित है, वे भला अपने अनुयायियों को किस प्रकार अनुभूति कर सकते है सदगुरु स्वप्न में भी अपने शिष्य से कोई लाभ या ससेवा-शुश्रूषा की लालसा नहीं करते, वरन् स्वयं उनकी सेवा करने को ही उघत करते है उन्हें यह कभी भी भान नहीं होता है कि मैं कोई महान हूँ और मेरा शिष्य मुझसे तुच्छ है, अपितु उसे अपने ही सदृश (या ब्रहमस्वरुप) समझा करते है सदगुरु की मुख्य विशेषता यही है कि उनके हृदय में सदैव परम शांति विघमान रहती है वे कभी अस्थिर या अशांत नहीं होते और उन्हं अपने ज्ञान का ही लेशमात्र गर्व होता है उनके लिये राजा-रंक, स्वर्ग-अपवर्ग सब एक ही समान है

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